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कोरबा की खबर :कोयला मंत्री के जाने के बाद जारी हुई ट्रांसफर लिस्ट में अमर-अकबर-एंथोनी का नाम न होना बना चर्चा का विषय,कमीशन का है खेला….
ये रिश्ता क्या कहलाता है साहब....

कोरबा। SECL की खदानों में कोयला उठाव के एवज में कमीशन का खेल जहां ऊर्जाधानी से लेकर देश की राजधानी दिल्ली और कोल इंडिया कंपनी में चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे ज्यादा चर्चा इस बात की हो रही है कि आखिर केंद्रीय कोयला मंत्री के आगमन पश्चात जारी तबादला सूची में गेवरा परियोजना खदान के तीन प्रमुख अधिकारियों का नाम क्यों नहीं है?

 

इस तबादला की सूची में एस के मोहंती ( जीएम गेवरा ), एन.खुर्सीद ( dy जीएम, कोल डिस्पैच इंचार्ज ), गौरी शंकर प्रसाद ( जीएम विद्युत एंड यांत्रिकी) का भी नाम होना चाहिए था,ऐसा खदान सूत्र मानते हैं।

इसमे कोई संदेह नहीं है कि गेवरा माइन्स को भी कमीशनखोरी का अड्डा बना दिया गया है।

0 10 रुपये एंट्री फीस, बाकी 50 रुपए तो है ही

खदान सूत्र बताते हैं कि SECL बिलासपुर की कोयला खदानों से कुछ उद्योगों को लिंकेज आक्शन (एफएसए) में कोयला दिया जाता है और दूसरा स्पॉट आक्शन के जरिए कोयले का विक्रय किया जाता है। लिंकेज आक्शन में केवल उद्योग को कोयला दिया जाता है जबकि स्पॉट आक्शन में कोई भी व्यक्ति कोयला क्रय कर सकता है। आक्शन (नीलामी) के बाद दोनों वर्ग के कोयला क्रेताओं को कंपनी हेडक्वार्टर से डिलेवरी आर्डर (डीओ) दिया जाता है, जिसे निर्दिष्ट कोयला खदान में प्रस्तुत करने पर क्रेता को कोयला प्रदान किया जाता है। रिश्वतखोरी और अवैध वसूली का खेल यहीं से शुरू हो जाता है। जानकारों ने बताया गया है कि कोयला खरीददार जब डीओ लेकर खदान में पहुंचता है तो सबसे पहले उसे एलाऊ फीस 10 रुपए प्रति टन देना ही होता है,इसके बाद ही कोयला को हाथ लगा सकेंगे वरना चक्कर काटते रह जाएंगे और कोयला उठाने की समय सीमा समाप्त हो जाएगी, डीओ लेप्स हो जाएगा।

 

0 स्टीम कोयला की चाह में रहते हैं पेशेवर लोग

एलाऊ फीस 10 रुपये देने के बाद क्रेता को कोयला प्रदान किया जाता है। क्रेता को आरओएम (रनिंग ऑफ माइंस) यानी खदान से जैसा कोयला फेस में पहुंचा है, वैसा ही दिए जाने का नियम है, लेकिन पेशेवर कोयला खरीददार यहां पर सांठगांठ से अच्छा कोयला उठाने की सुविधा चाहता है। वह आरओएम की जगह स्टीम कोयला लेना चाहता है। इस सुविधा के लिए कोयला खरीददार को 50 से 60 रुपए प्रति टन सेवा शुल्क का भुगतान करना पड़ता है, जो क्रेता खुशी-खुशी दे देता है और चुनकर स्टीम कोयला उठा लेता है। इसके बाद फेस में रह जाता है स्लैक कोयला का चुरा, जिसमें खदान से कोयला के साथ निकला मिट्टी, पत्थर आदि शामिल होते हैं और ऐसे स्लैक को सेवा शुल्क नहीं देने वालों के मत्थे मढ़ दिया जाता है। यह स्टीम कोयला कटनी, सतना और वाराणसी कोयला मंडी ले जाया जाता है, जहां यह ऊंची कीमत पर बिकता है।

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