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कोरबा अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्र-छात्राओं को सुविधाएं देने के नाम पर सरकार द्वारा प्रदान किए गए करोड़ों रुपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। जिले में 3 करोड़ रुपये के कार्यों से संबंधित फाइलें गायब हैं, और कोई भी दस्तावेज़ीय रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। यह मामला आदिवासी विकास परियोजना के तहत केंद्र सरकार की योजनाओं में वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ा है।
भारत सरकार के जनजाति कार्य मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत आदिवासी विकास परियोजना के लिए 600 लाख रुपये की राशि आवंटित की गई थी। यह राशि रायपुर के आयुक्त, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा कोरबा के परियोजना प्रशासक को दी गई थी। तत्कालीन परियोजना प्रशासक श्रीमती माया वॉरियर के नेतृत्व में इस राशि का वितरण किया गया था, जिसमें से 500 लाख रुपये छात्रावासों और आश्रमों के रेनोवेशन और सामग्री आपूर्ति के लिए निर्धारित किए गए थे।
सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास विभाग को इस कार्य के लिए एजेंसी नियुक्त किया गया था, और 400 लाख रुपये सिविल कार्यों के लिए जारी किए गए थे। श्रीमती माया वॉरियर के कार्यकाल के दौरान इस राशि का व्यय किया गया था, लेकिन इससे संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब हो गए हैं।
छात्रावासों और आश्रमों में किए गए लघु निर्माण और रेनोवेशन कार्यों से जुड़े निविदा दस्तावेज़, कार्य आदेश, माप पुस्तिका, बिल वाउचर और अन्य वित्तीय रिकॉर्ड कार्यालय से गायब हैं। इस घोटाले में शामिल अधिकारी और कर्मचारी पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी राशि का गबन किया है और भ्रष्टाचार के माध्यम से इस पैसे का दुरुपयोग किया है।
इस घोटाले में मुख्य रूप से तत्कालीन सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास विभाग, श्रीमती माया वॉरियर पर संदेह जताया जा रहा है, जिन्होंने इस राशि का व्यय किया, लेकिन उससे जुड़े कोई भी वित्तीय रिकॉर्ड अब तक उपलब्ध नहीं हैं।
यह मामला उजागर होने के बाद सरकारी प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच हलचल मच गई है। जनता और शिकायतकर्ताओं ने इस मामले में सख्त जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उन्हें लगता है कि बिना किसी वैध दस्तावेज़ के इतने बड़े पैमाने पर घोटाला करना सरकारी धन का सीधा गबन है।
अब देखना होगा कि इस घोटाले में शामिल दोषियों पर कब और कैसे कार्रवाई होती है, और इस भ्रष्टाचार के कारण सरकारी खजाने को हुए नुकसान की भरपाई कैसे की जाएगी।